शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

सही वक्त + कड़ी मेहनत = लक्ष्य प्राप्ति .( काल्पनिक बाल-किशोर कथा )

बहोत साल पहले रामनगर नामक राज्य था | राजा जयराम अत्यंत पराक्रमी ,दयालू था और रामनगर की प्रजा अपने राजा तथा उनकी पत्नी रूपवती,धार्मिक रानी सीतादेवी पर अत्यंत प्यार और सन्मान करती थी | राजपुत्र विक्रम अब बड़े हो रहे थे, राजा और रानी को एक ही  चिंता थी की राजपुत्र विक्रम को पढ़ाई मे दिलचस्पी बिलकुल नहीं थी |राजा जयराम सीतादेवी से कई बार कहतें थे, "राजपुत्र विक्रम को मेरे बाद उत्तम राज्य करना है तो उन्हे राज्य शासन के सभी पहलू ,विषय का ज्ञान होना आवश्यक है "| परन्तु राजपुत्र विक्रम अपने खेलकूद मे मस्त थे |
                           युहीं कई साल गुजर गएँ और एक दिन प्रदीर्घ बीमारी के बाद राजा जयराम परलोक सिधार गएँ | केवल पन्द्र्हः वर्ष की उम्र मे ही राजपुत्र विक्रम को रामनगर राज्य की जिम्मेदारी स्वीकारनी पड़ी | दुसरी ओर, राजा दुष्ट कर्मा इसी मौके की तलाश कई सालोंसे कर रहा था | उसने अपने मंत्रियोंकी गुप्त बैठक बुलाई और बोला ," यही सही वक्त है समृद्ध रामनगर पर धावा बोल देनेका,  राजा जयराम नहीं रहे ,राजा  विक्रम अभी बच्चा है, उसे अनुभव की कमी ,प्रजा का विश्वास तथा साथ  हासिल नहीं है तो हमले की तैय्यारी तुरंत की जाएँ "| राजा जयराम के निधन दुखः से प्रजा संवरने से पहलेही दुष्ट कर्मा का हमला रामनगर पे हुआ | इस बड़े हमलेमे, रामनगर राज्य के सैनिक जान की बाजी लगाकर लड़े पर राजा विक्रम के  कमजोर नेतृत्व की वजह से रामनगर राज्य की हार हुई | महारानी सीतादेवी और राजा विक्रम जैसे-तैसे जान बचाकर पड़ोसी राज्य शिवपुरी मे शरण लेने मे सफल हो गएँ |
                         शिवपुरी के राजा नागसेन महारानी सीतादेवी के छोटे भाई थे | वहाँ राजा विक्रम ने शरण जरूर ली थी पर उन्हे चैन बिलकुल नहीं था , वह हमेशा रामनगर की पहली हार के बारेमे सोचते थे | बहोत विचार-विमर्श के बाद उन्हे पता चला और एक दिन वह अपने मामा राजा नागसेन से बोले, "मामाजी ,सही उम्र मे विद्या ग्रहण करने के बजाय मैं खेलता रहा और राज्य शासन ज्ञान के आभाव से ही मेरी शर्मनाक हार हो गई | अब मेरे पास वक्त कम है तो दिन-रात मेहनत करके मैं राज्य शासन ज्ञान पाऊंगा और अपने रामनगर को वापस जीत लूँगा "| राजा नागसेन ने निपुण राजगुरु विष्णु शर्मा        जी की नियुक्ति इस कम के लिए की |
                        राजगुरु विष्णु शर्मा जी के मार्गदर्शन तले राजा विक्रम ने अथक परिश्रम से राजनिती शास्त्र , युद्धनिती शास्त्र , अर्थ शास्त्र ,विविध शस्त्र विद्या और बाकी विषयोमें महारत हासिल की | एक दिन वह अपनी माँ सीतादेवी ,मामा राजा नागसेन और उनके मंत्रियोंकी गुप्त सभा मे बोलें ," माननीय सज्जन गण,मेरे गुप्तचरों ने मुझें यह जानकारी दी है की राजा दुष्ट कर्मा के अन्याय से रामनगर की जनता त्रस्त है और हमारे छुपें ईमानदार सैनिक और जनता दुष्ट कर्मा के दुःशासन के खिलाफ़ विरोध  करनेवाली है , हमें उन्हे शस्त्र सहाय्यता करनी चाहिए | एक तरफ़ अंदर से सशस्त्र विरोध और दुसरीतरफ़ से हमारा आप सबकी सहाय्यता से युद्ध, दुष्ट कर्मा इन दोहरे हमले के सामने नहीं टिक पायेगा"| राजा नागसेन, राजा विक्रम के आत्मविश्वास ,दूरदृष्टि और युद्धनिती से प्रभावित हुए , उन्होने जाना की निपुण राजगुरु विष्णु शर्मा ने शिक्षा देनेमे और राजा विक्रम ने सिखनेमे कोई कसर नहीं छोड़ी है | उन्होने संपूर्ण मदद की हामी दी |
                       जब दुष्ट कर्मा और उसके सैनिक रामनगर प्रजा के सशस्त्र विरोध को रोकने मे व्यस्त थे, राजा विक्रम और शिवपुरी की सेनाने मिलकर दुष्ट कर्मा पर हल्ला बोल दिया | इस घनघोर युद्ध मे दुष्ट कर्मा मारा गया और राजा विक्रम ने रामनगर को जीत लिया | रामनगर प्रजा ने महारानी सीतादेवी और राजा विक्रम का हर्ष-उल्ल्हास के साथ स्वागत किया और राजा विक्रम ने आगे अनेक वर्षों तक रामनगर मे कुशलता से सुशासन किया | 
                      तो देखा दोस्तों , सही उम्र मे राजा विक्रम ने सही मेहनत ना करनेका नतीजा ,उन्हे अपना राज्य खोना पड़ा और कम समय मे दुगनी मेहनत करके उसी राज्य को वापस हासिल करना पड़ा | आपकी यह उम्र खूब पढ़ाई करने और अच्छे नंबर पाने तथा उच्च शिक्षा पानेकी है | अगर इसे   आप खो दोगे तो आपको भी आगे दुगनी कोशिश करनी होगी, तभी यश मिलेगा |खूब पढ़ो और उच्च शिक्षा पाके इस दुनिया मे छा जाओ यही सदिच्छा |     

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर शिक्षा देती प्यारी बालकथा ...... बहुत अच्छी लगी कहानी

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  2. मान्यवर! आप हमारे ब्लॉग पढ़े और इतने अछे टिपण्णी दी, इसकेलिए हम आपके आभारी हैं! आप ने जो भी हमारेलिये लिखा उस से हमें और भी लिखने की होसला मिलेंगे, यही आशा हैं|

    हिंदी में लिखना मेरेलिए उतना आसान नहीं जितना मेरी मातृभाषा मलयालम या इंग्लिश में लिखना| फिर भी हिंदी से इतना लगाव हैं की हम कभी कभी कुछ लिख पातें हैं| आप लोगों को यह अच्छा लगा, वही मेरेलिए बड़ी बात हैं|

    हम आशा करते हैं कि आप के हर इक काम में कामयाबी हासिल हो और आप एक बड़े कलाकार बने|

    सुभकामनाएं!!!

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