मंगलवार, 20 सितंबर 2011

ऐ नारी तुझे लाखों सलाम ( भाग -१ )

जैसे ही यू-ट्यूब से यह व्हीडियो शुरू हुआ ,मैंने देखा एक बड़े हॉल मे बड़े,सजे स्टेज पर तालियोंकी गडगडाहट मे एक औरत का , जो लाल नेहरु शर्ट,कालीसलवार और चश्मा पहने खड़ी थी , स्वागत हो रहा था | उनका पहला वाक्य मैंने सुना "आज मैं मानव अधिकार के सबसे घिनौने हनन ,तीसरे सबसे बड़े संघटित अपराधिक गतिविधी,सैकड़ो करोड़ डॉलर का गैर-कानूनी व्यापार और आधुनिक दुनिया मे हो रही गुलामी के बारेमें बात करने वाली हूँ "| फिर स्टेज पर लगी बड़ी स्क्रीन पर तीन छोटी मासूम लडकियोंके के फोटो दिखाकर आगे बोली ,"इन तीन लड्कियों के नाम प्रणिता,शाहीन और अंजलि हैं | प्रणिता की माँ वेश्या और H . I . V . एड्स से पीड़ित, थी | उसके असाध्य रोग के आखरी दिनोंमे वह वेश्या व्यवसाय नहीं कर पा रही थी , तो उसने चार साल की प्रणिता को एक दलाल को बेच दिया | जब हम उसे छुड़ाने गए थे तबतक उसके साथ तीन आदमियोंने ( हैवानोंने )बलात्कार किया था "| मैं सुन्न होकर आगे सुन रहा था ,"शाहीन ,दुसरी छोटी लड़की ,हमें रेलवे पटरी पर पड़ी हुई मिली ,उसके साथ ना जाने कितने लोगोंने बलात्कार और अत्याचार किया था ,क्यों की उसकी अंतडियां पेट से बाहर आ गई थी| उसका ऑपरेशन अस्पताल मे हुआ तो बत्तीस टांके लगे ,अंतडिया उसके शरीर मे सही ठिकाने लगाने को |
                                                 अंजलि,तीसरी मासूम बच्ची,उसका पिता अव्वल नंबर का शराबी,उसने अपने पांच साल के बेटी को लैंगिक सम्बंधोपर फिल्म चित्रीकरण (BLUE FILM ) के लिए बेच दिया" | मेरा दिल यह सब सुनके दहेल उठा |आगे वह बोल रही थी ,"इस देशमे तथा दुनिया मे ऐसे हज्जारों बच्चे गुलामी व्यापार ,गोद लेनेके व्यापार,शरीर अंग बेचनेके व्यापार,ऊंट रेस व्यापार (ऊंट के पीठपर बच्चोंको बंधा जाता है,उनके डर से जोरसे चिल्लाने की आवाज से ऊंट रेस मे तेजीसे भागते हैं) और लैंगिक शोषण व्यापार के लिए बेचे और ख़रीदे जाते हैं | मैं बच्चों और औरोतों पर होते लैगिक शोषण के खिलाफ़ काम करती हूँ" |उस समाज सेविकाने आगे खुलासा किया,"मैं इस क्षेत्र मे यौन उम्रसे ही काम कर रही हूँ ,आज मेरी उम्र चालीस साल की है | इस कार्य मे मैं इसलिए उतरी क्यों की मैं जब पन्ध्रह साल की थी मुझपर आँठ लोगोंने सामूहिक बलात्कार किया था | मुझपर बलात्कार हुआ इसका दुःख मुझे जरूर था लेकिन उससे ज्यादा गुस्सा इस बात का था की मुझे दो सालतक अपनोंने घरमे कैद करके रखा था ,मुझपर ताने कसे जाते थे | अक्सर यहीं होता है,पीड़ित कैद हो जाते है और अपराधी सीना तानके समाज मे घूमते हैं |इसका प्रमुख कारण,  सुसंकृत समाज ऐसे पीड़ित लोगोंको अपने पैरोपर खड़े होनेकी हिम्मत और अवसर नहीं देता |यह मत समझिए की सिर्फ गरीब बच्चे और औरतेंही लैंगिक शोषण का शिकार होते हैं बल्कि उच्च वर्गीय,मध्यम वर्गीय घरके बच्चो और औरतोंको इसका शिकार होतें हमने देखा हैं | मैंने तीन हजार दो सौं से ज्यादा लोगोंको लैंगिक शोषण होने के बाद या पहले बचाया है | इस दौरान मेरे ऊपर चौदह बार जानलेवा हमले, इस क्षेत्रमे व्यापार करनेवाले माफिया लोगोंसे,हुए हैं| यही वजह है ,मैं अपने दाहिने कान से  नहीं सुन सकती ,हमारे एक कर्मचारी की जान भी इस बचाव कार्यमे गई है | हमने और कुछ जागरूक कम्पनियोंने मिलके ऐसी पीड़ित औरतोंको नौकरी दिलवाने मे मदद की है | आज बहोत सारी ऐसी महिलाऐं अपने पैरोपर खड़ी होकर स्वाभिमान से अच्छे पैसे कमा रही हैं" | यह बात सुनकर पहलीबार मेरे मनमें आशा की किरन जाग उठी | इस समाज सेविका की सुसंस्कृत समाजसे एक ही मांग हैं ,"इन लैंगिक शोषण पीड़ित लोगोंको आप असुरक्षित समाज के लाचार शिकार की तरह देखकर सिर्फ सहानुभूति या चर्चा,तानों का विषय ना बनाकर, उन्हे इसी समाज मे अपनाकर अपनी रोजी-रोटी कमानेका हक दीजिए | मैं आपको अन्ना हजारे, गांधीजी,मेधा पाटकर जी बनने के लिए नहीं कह रही हूँ | मेरी माँग आपसे सिर्फ यही है की आप यह कहानी सिर्फ दो लोगोंको बोलियें ताकि उनका नजरियाँ बदल जाए और वे लोग भी आपकी तरह ऐसे पीड़ित लोगोंको इस समाज मे अपना ले और आपकी तरह यह कहानी और दो लोगोंको बताएँ और यह समाज उन्हे इज्जत की रोटी कमानेमे सहाय्यता करें , धन्यवाद "| मेरे मन मे वेदना,गुस्सा और आँखों मे शर्म के आँसू थे | मैं सोच रहा था , क्या हम, हमारी सरकार अपने देश के बच्चों और औरतोंकी, लैंगिक शोषण करनेवालें माफिया,अपराधी लोगोंसे , रक्षा करने के लिए  एक सक्षम व्यवस्था और कानून बना नहीं सकते ? हम सब जिम्मेदार नागरिक है तो जरूर ऐसी व्यवस्था बना सकते हैं | इसके लिए यह कहानी दो लोगोंको सुनाकर जागृति लानी होगी | मैंने कोशिश की है ,मुझे विश्वास है के आप भी करेंगे |
                                                                      इस कहानी को सुनानेवाली समाज सेविका श्रीमती सुनीता कृष्णन जी , आपकी हिम्मत , कार्य और आपको मेरे लाखों सलाम | 

बुधवार, 14 सितंबर 2011

नास्तिक बन गया आस्तिक

                                                            || श्री गणेश दत्त गुरुभ्यो नमः ||
आज मैं अपने पहले लेख की शुरुआत आधि देवता गणेश जी और भगवान दत्त जी को नमन करके कर रहा हूँ | लेकिन लगभग तीस साल पहले मैं ऐसा नहीं था | मैं पक्का नास्तिक था | मेरे सौभाग्य से मेरा जन्म एक धार्मिक परिवार मे हुआ | विशेषतः मेरी माँ , जो आज भी इस बात पे पूरा विश्वास करती है की भगवान के कृपा बगैर जीना असंभव है | मैं बचपन मे देखता था , जो लोग नास्तिक हैं वह अपनी निजी जिंदगी मे सफल थे , उनके पास पैसा , मान , प्रतिष्ठा सबकुछ था और हमारी हालत खस्ता थी | धीरे-धीरे मेरा भगवान परसे विश्वास उड़ गया और इश्वर श्रद्धा छोडिए मैं भगवान को नमस्कार करना भी पागलपन समझता था | मेरी नास्तिकता इस हद तक बढ़ गई थी की मेरी माँ मुझे पूजा करने को कहती तो मैं मजाक उडाकर कहता था , " अगर तुम्हारा भगवान अस्तित्व मे हैं तो उसे मेरे सामने आकर खड़ा होने  के लिए कहों , अगर वह मेरे सामने आता हैं तो ही मैं उसे मानूँगा और अच्छी तरह परखने के बाद यदी मेरा मन कहता है की यह वाकई भगवान है तभी मैं उसकी पूजा करूँगा " | इसपर मेरी माँ मुझे समझाने की कोशिश करती कहती थी ," बेटा , इन हजारो सलोंमे तेरे जैसे , ऐसे सवाल करने वाले लाखो पैदा हुए और गुजर भी गए , लेकिन उस वक्त भी भगवान और उनके करोड़ों भक्त थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे " | मैं उनकी बात नहीं मानता और उसे हंसी मे उड़ा देता था |
मेरी नास्तिकता के आग़ मे तेल डालने का काम किया मेरे पिताजी के बिगड़ती तबियत ने | मेरे पिताजी की तबियत बिगड़ गई तो मेरे माँ की पूजा दुगनी हो गई | मैं हैरान था , एक तरफ़ भगवान तकलीफों के भंडार खोल कर हम पे बरसा रहा था , तो दुसरी तरफ़ मेरी माँ उसी भगवान से मदद की आशा कर रही थी | इसी दरमियान माँ जी जिस स्कूल मे शिक्षिका की नौकरी कर रही थी , उनकी सह-शिक्षिका श्रीमती सुहासिनी कुलकर्णी जी ने कहा , "आपके पतिजी की तबियत बहोत सालोंसे खराब है , हमारे घर एक सिद्ध पुरुष सांगली से आए है , आप उन्हे मिलिए , उनकी कृपा से आपके पतिजी की तबियत हो सकता है ठीक हो जायेगी " | माँ की आग्रह पर , मैं ना चाहते  हुए भी , उनके साथ श्री. मोहन जनार्दन जोशी नामक व्यक्ति से मिलाने गया ( जो कुछ साल बाद मेरे आध्यात्मिक गुरु बने | उन्हे हम सारे भक्त ' काका महाराज जी ' या ' काका जी ' के नामसे जानते हैं ) | ' काका जी ' ने हमें पिताजी के साथ ' श्री क्षेत्र नृसिंह वाडी ' आकर , कुछ धार्मिक विधि करने को कहाँ ( ' श्री क्षेत्र नृसिंह वाडी ' नरसोबा वाडी नामसे सांगली ,महाराष्ट्र मे प्रचलित है और यहापर ' श्री नृसिंह सरस्वती ' , जो भगवान दत्त जी के तीसरे अवतार माने जाते है , उनका वास्तव्य रहा हैं ) | मेरे मन मे विचार आया , चार सालसे बड़े-बड़े डॉक्टर उपचार करके थक चुके है , तीन दिनमे यहाँ क्या होगा ? फिरभी हम सब वहाँ गए |
                   एक दिन ' श्री नृसिंह सरस्वती जी ' के मंदिर मे पिताजी की तबियत बेहोश होने की हालत तक बिगड़ गई | उनकी आँखे बंद हो रही थी , बदन ढीला पड़ रहा था | पिताजी को सहारा देकर बिठाते हुए माँ मुझे बोली ," तुरंत जाकर 'काका जी' को लेकर आ " | मैं चिल्लाया ," काका जी यहाँ आकर क्या करेंगे ? पिताजी को डॉक्टर के  इलाज की जरुरत है "| माँ ने मेरी अल्प-बुद्धि को तुरंत भाप लिया , मुझे पिताजी का खयाल रखने को कहकर वह 'काका जी' को ले आने दौडती चली गई | 'काका जी' थोड़ी दूरीपर पेड़ के निचे साधना करते बैठे थे | माँ की बात सुनकर वे  फ़ौरन चले आए | परिस्थिती की गंभीरता को देखकर , उन्होने शांत चित्त से मंदिर मे जहाँ भस्म रखा था वहाँसे चुटकीभर भस्म लिया और भगवान के सामने कुछ मंत्र पढ़कर , वहीँ भस्म मेरी हथेली पे रखा | 'काका जी' मुझे बोले " यह भस्म अपने पिताजी के जिंव्हा (जबान ) पर रखो " | मैं सोच रहा था , इस भस्म से ऐसा क्या जादू होनेवाला है ? फिरभी मैंने भस्म को पिताजी के पीड़ा से खुले हुए मुंह मे डाला | चमत्कार....... पिताजी ने आँखे फटाक से खोल दी | अचानक उनके जमीं पर ढीले पड़े शरीर मे चेतना आ गई , वे त्वरित उठकर बैठ गए | उन्होने हमसे पुंछा ," ऐसा क्या कर दिया आपने ? मुझे इतना सुकूं कैसे मिला ? " इस आश्चर्य को देख कर मैंने श्रद्धापूर्वक भगवान और 'काकाजी' को नमन किया और नास्तिक से आस्तिक बन गया |