सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

बड़े पर्दे का सपना |

सिनेमाघरमे बड़े पर्देपर हिंदी फिल्ममे अभिनय करते हुए मै अपने आप को  देखूँ  , यह मेरा सपना बचपन से था | घर पर लगे बड़े आईने के सामने इसे साकार होने का खेल मैंने अकेलेमे छुपके बहोत बार खेला था | लेकिन इस सपने को साकार करने का निश्चय मैंने किया तब मेरी उम्र लगभग उन्नीस साल की थी | मैंने अपने पिताजी को इस निर्णय के बारेमे कहा तो उन्होने मुझे सलाह दी , " देखो बेटा , मैंने भी अपने जवानी मे यह कोशीश की थी , परन्तु कामयाबी नहीं मिली और मेरा ख़्वाब अधूरा ही रह गया | एक अच्छी बात यह थी की मै मुंबई मे नौकरी करता था, तो इस क्षेत्र के लोगोंको मिलना आसान था , बहोत पापड़ मैंने भी बेलें थे उन दिनोंमे पर किसीने मेरी दाल गलने नहीं दी "| उसके बाद उन्होने अलमारी मे रखे पुराने फोटो दिखाएँ और आगे बोले ," ऐसे कितने फोटो और मेरा अभिनय अनुभव से भरा बायो-डाटा मैंने फिल्म निर्माण कम्पनियोंमे मे दिया था पर निराशा के अलावा और कुछ हाथ ना आया | तुम तो अभी सोलापुर मे रहेते हो और अभिनय अनुभव भी नहीं है, तुम्हे मौका मिलना तो और भी मुश्किल है "| हमारी आर्थिक परिस्थिती की बदौलत मेरा मुंबई जाकर कोशीश करना असंभव था तो मैंने सोलापुर मे रह्कर अपनी शिक्षा पूरी करनेका और अभिनय तथा नृत्य मे अनुभव लेनेका निर्णय लिया |
                                                वाणिज्य शाखा की पढ़ाई चल रही थी | वह जमाना डिस्को और ब्रेक डांस का था | अभिनय और इन डांस शैलियोंको सीखने के लिएँ मैं एक डांस ग्रुप तथा नाट्य मंडली मे शामिल हुआ | इसके लिए मेरे मित्र राहुल कोठाडिया और उनकी रिश्तेदार डॉ. हर्षदा शहा ने बहोत मदद की थी | तो मेरा दिनक्रम बहोत व्यस्त था , सुबह कॉलेज , दोपहर अकौंटन्सी क्लास और शामको या तो डांस क्लास या नाट्य मंडली मे जाकर नाटक की प्रॅक्टीस | मेरे बाकी मित्र शाम मे घूमने निकली सुन्दर युवतियोंको देखने बाहर निकलते थे और मैं बड़े मुश्किलसे अपने आप को मेरे सपने को साकार करने के लक्ष्य की ओर खींच चल पडता था | यूँही साल गुजर गएँ , मैंने वाणिज्य शाखा की पदवी तथा M.B.A. की शिक्षा पूरी की और साथ-साथ श्री .मनोज शहा और श्री. अन्वर जी से डिस्को तथा ब्रेक डांस सिखा , कुछ स्टेज शो भी किये | उसी दरमियान अलग-अलग नाट्य मंडलियों मे  अभिनय का अनुभव लेता रहा | मेरी अभिनय क्षमता को विकसित करनेमें  श्री. बंडेश पांढरे ,श्री. अजय  दासरी, श्री. अरुण मेहता , श्री. कांबले सर , श्री. अतुल कुलकर्णी , डॉ . वामन देगांवकर , श्री. शिरीष देखणे ,श्री. जगदीश हिरेमठ और मेरे परम मित्र श्री. सुनिल गुरव इन महान दिग्दर्शकोंका बड़ा हाथ रहा है |
                                                अब मुझे लग रहा था की मैं मुंबई जाकर फिल्मो मे अभिनय करने की कोशिश कर सकता हूँ तभी ...................... मेरे पिताजी की दिल का दौरा पडने से मृत्यू हो गई ....... | मेरे लिए यह झटका बहोत ... बहोत बड़ा था | सारी जिम्मेदारी मेरी माँ पर आ पड़ी थी | उसके साथ हाथ बटाने के लिए मैंने नोकरी करनेका निर्णय ले लिया | मेरा सपना मुझसे दूर -दूर हो रहा था | फिर भी मैंने हिम्मत जुटाके नाटकों मे स्टेज पर या उसके पीछे काम करना जारी रखा था |
                                                 माँ १९९६ मे अपनी शिक्षिका के नोकरी से निवृत्त होने के बाद हम दोनों भाग्यनगर हैदराबाद आ गएँ | सिकंदराबाद मे हमारे नानाजी की भेंट दी हुई जमीन पर माँ ने एक घर बनाया ,उसीमें रहने लगे थे | मैंने मेरे रिश्तेदारोंको बताया की अब मै अभिनय क्षेत्र मे काम करना चाहता हूँ | बड़े विचार-विमर्श के बाद मेरे मामाजी डॉ .बी. रामाराव , मौसेरे भाई श्री . अनिल देशपांडे और श्री . नंदू गामजी चाचा जी के मदद से मै श्री. कृष्णा भारद्वाज जी से मिला | वह उन दिनों एक टी.व्ही. धारावाहिक के लिए कास्टिंग इंचार्ज थे और उसीमे अभिनय भी कर रहे थे | उन्होने मुझे टी.व्ही . कॅमेरा के सामने धारावाहिक मे काम करनेका पहला मौका दिया | उसके बाद कई हिंदी और मराठी टी .व्ही . धारावाहिकोंमे अभिनय करनेका सिलसिला चलता रहा |
                                                एक दिन खबर आई की प्रसिद्ध दिग्दर्शक श्री. नागेश कुकुनूरजी , जाने-माने शो- मन  श्री. सुभाष घई जी के मुक्ता आर्ट्स के लिए ' इकबाल ' फिल्म बना रहें है और उस के लिए ऑडीशन ( पात्र -निर्धारण ) हो रहा है |   मेरे स्नेही  श्री.भास्कर और डॉ.श्रीकांत के मदद से मैंने ऑडीशन दिया और क्रिकेट सिलेक्शन कमिटी चेयरमन सुनिल मित्रा के पात्र के लिएँ चुन भी लिया गया | फिल्म शूटिंग के दिन सुबह चार बजे उठकर चले गया और मुझे पता चला के मेरे तीन सीन विश्वप्रसिद्ध महान अभिनेता , जिनका मैं कई सालोंसे फॅन हूँ , श्री . नसीरुद्दीन शाह जी के साथ है | मुझे पसीने छूट गए | जैसे-तैसे हिम्मत जुटाकर मैंने शूटिंग पूरी की | श्री. नागेश कुकुनूर जी को धन्यवाद देकर मैं घर वापिस आ गया | मैं खुशी के मारे मानो आसमान मे उड़ रहा था |
                                               प्रसाद आई-मॅक्स सिनेमाघर मे फिल्म लगी थी | मैं ,मेरी माँ,पत्नी , मेरी दो बेटियाँ, मामाजी और ममेरा भाई श्रीनिवास हम सब मिलके फिल्म देखने गएँ | मेरे ४५ वर्ष के आयु  मे बहोत खुशी के क्षण चंद ही है , यह क्षण उसमेसे एक है ...... मेरे अभिनीत सीन आएँ...... मेरी आखोँ मे खुशी के आँसू थे , क्यों की ..........
                                            लगभग बीस साल के प्रदीर्घ प्रतीक्षा , मेहनत और लगन के बाद मेरा और मेरे पिताजी का --- बड़े पर्दे का सपना पूरा हो रहा था |

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

सही वक्त + कड़ी मेहनत = लक्ष्य प्राप्ति .( काल्पनिक बाल-किशोर कथा )

बहोत साल पहले रामनगर नामक राज्य था | राजा जयराम अत्यंत पराक्रमी ,दयालू था और रामनगर की प्रजा अपने राजा तथा उनकी पत्नी रूपवती,धार्मिक रानी सीतादेवी पर अत्यंत प्यार और सन्मान करती थी | राजपुत्र विक्रम अब बड़े हो रहे थे, राजा और रानी को एक ही  चिंता थी की राजपुत्र विक्रम को पढ़ाई मे दिलचस्पी बिलकुल नहीं थी |राजा जयराम सीतादेवी से कई बार कहतें थे, "राजपुत्र विक्रम को मेरे बाद उत्तम राज्य करना है तो उन्हे राज्य शासन के सभी पहलू ,विषय का ज्ञान होना आवश्यक है "| परन्तु राजपुत्र विक्रम अपने खेलकूद मे मस्त थे |
                           युहीं कई साल गुजर गएँ और एक दिन प्रदीर्घ बीमारी के बाद राजा जयराम परलोक सिधार गएँ | केवल पन्द्र्हः वर्ष की उम्र मे ही राजपुत्र विक्रम को रामनगर राज्य की जिम्मेदारी स्वीकारनी पड़ी | दुसरी ओर, राजा दुष्ट कर्मा इसी मौके की तलाश कई सालोंसे कर रहा था | उसने अपने मंत्रियोंकी गुप्त बैठक बुलाई और बोला ," यही सही वक्त है समृद्ध रामनगर पर धावा बोल देनेका,  राजा जयराम नहीं रहे ,राजा  विक्रम अभी बच्चा है, उसे अनुभव की कमी ,प्रजा का विश्वास तथा साथ  हासिल नहीं है तो हमले की तैय्यारी तुरंत की जाएँ "| राजा जयराम के निधन दुखः से प्रजा संवरने से पहलेही दुष्ट कर्मा का हमला रामनगर पे हुआ | इस बड़े हमलेमे, रामनगर राज्य के सैनिक जान की बाजी लगाकर लड़े पर राजा विक्रम के  कमजोर नेतृत्व की वजह से रामनगर राज्य की हार हुई | महारानी सीतादेवी और राजा विक्रम जैसे-तैसे जान बचाकर पड़ोसी राज्य शिवपुरी मे शरण लेने मे सफल हो गएँ |
                         शिवपुरी के राजा नागसेन महारानी सीतादेवी के छोटे भाई थे | वहाँ राजा विक्रम ने शरण जरूर ली थी पर उन्हे चैन बिलकुल नहीं था , वह हमेशा रामनगर की पहली हार के बारेमे सोचते थे | बहोत विचार-विमर्श के बाद उन्हे पता चला और एक दिन वह अपने मामा राजा नागसेन से बोले, "मामाजी ,सही उम्र मे विद्या ग्रहण करने के बजाय मैं खेलता रहा और राज्य शासन ज्ञान के आभाव से ही मेरी शर्मनाक हार हो गई | अब मेरे पास वक्त कम है तो दिन-रात मेहनत करके मैं राज्य शासन ज्ञान पाऊंगा और अपने रामनगर को वापस जीत लूँगा "| राजा नागसेन ने निपुण राजगुरु विष्णु शर्मा        जी की नियुक्ति इस कम के लिए की |
                        राजगुरु विष्णु शर्मा जी के मार्गदर्शन तले राजा विक्रम ने अथक परिश्रम से राजनिती शास्त्र , युद्धनिती शास्त्र , अर्थ शास्त्र ,विविध शस्त्र विद्या और बाकी विषयोमें महारत हासिल की | एक दिन वह अपनी माँ सीतादेवी ,मामा राजा नागसेन और उनके मंत्रियोंकी गुप्त सभा मे बोलें ," माननीय सज्जन गण,मेरे गुप्तचरों ने मुझें यह जानकारी दी है की राजा दुष्ट कर्मा के अन्याय से रामनगर की जनता त्रस्त है और हमारे छुपें ईमानदार सैनिक और जनता दुष्ट कर्मा के दुःशासन के खिलाफ़ विरोध  करनेवाली है , हमें उन्हे शस्त्र सहाय्यता करनी चाहिए | एक तरफ़ अंदर से सशस्त्र विरोध और दुसरीतरफ़ से हमारा आप सबकी सहाय्यता से युद्ध, दुष्ट कर्मा इन दोहरे हमले के सामने नहीं टिक पायेगा"| राजा नागसेन, राजा विक्रम के आत्मविश्वास ,दूरदृष्टि और युद्धनिती से प्रभावित हुए , उन्होने जाना की निपुण राजगुरु विष्णु शर्मा ने शिक्षा देनेमे और राजा विक्रम ने सिखनेमे कोई कसर नहीं छोड़ी है | उन्होने संपूर्ण मदद की हामी दी |
                       जब दुष्ट कर्मा और उसके सैनिक रामनगर प्रजा के सशस्त्र विरोध को रोकने मे व्यस्त थे, राजा विक्रम और शिवपुरी की सेनाने मिलकर दुष्ट कर्मा पर हल्ला बोल दिया | इस घनघोर युद्ध मे दुष्ट कर्मा मारा गया और राजा विक्रम ने रामनगर को जीत लिया | रामनगर प्रजा ने महारानी सीतादेवी और राजा विक्रम का हर्ष-उल्ल्हास के साथ स्वागत किया और राजा विक्रम ने आगे अनेक वर्षों तक रामनगर मे कुशलता से सुशासन किया | 
                      तो देखा दोस्तों , सही उम्र मे राजा विक्रम ने सही मेहनत ना करनेका नतीजा ,उन्हे अपना राज्य खोना पड़ा और कम समय मे दुगनी मेहनत करके उसी राज्य को वापस हासिल करना पड़ा | आपकी यह उम्र खूब पढ़ाई करने और अच्छे नंबर पाने तथा उच्च शिक्षा पानेकी है | अगर इसे   आप खो दोगे तो आपको भी आगे दुगनी कोशिश करनी होगी, तभी यश मिलेगा |खूब पढ़ो और उच्च शिक्षा पाके इस दुनिया मे छा जाओ यही सदिच्छा |