सिनेमाघरमे बड़े पर्देपर हिंदी फिल्ममे अभिनय करते हुए मै अपने आप को देखूँ , यह मेरा सपना बचपन से था | घर पर लगे बड़े आईने के सामने इसे साकार होने का खेल मैंने अकेलेमे छुपके बहोत बार खेला था | लेकिन इस सपने को साकार करने का निश्चय मैंने किया तब मेरी उम्र लगभग उन्नीस साल की थी | मैंने अपने पिताजी को इस निर्णय के बारेमे कहा तो उन्होने मुझे सलाह दी , " देखो बेटा , मैंने भी अपने जवानी मे यह कोशीश की थी , परन्तु कामयाबी नहीं मिली और मेरा ख़्वाब अधूरा ही रह गया | एक अच्छी बात यह थी की मै मुंबई मे नौकरी करता था, तो इस क्षेत्र के लोगोंको मिलना आसान था , बहोत पापड़ मैंने भी बेलें थे उन दिनोंमे पर किसीने मेरी दाल गलने नहीं दी "| उसके बाद उन्होने अलमारी मे रखे पुराने फोटो दिखाएँ और आगे बोले ," ऐसे कितने फोटो और मेरा अभिनय अनुभव से भरा बायो-डाटा मैंने फिल्म निर्माण कम्पनियोंमे मे दिया था पर निराशा के अलावा और कुछ हाथ ना आया | तुम तो अभी सोलापुर मे रहेते हो और अभिनय अनुभव भी नहीं है, तुम्हे मौका मिलना तो और भी मुश्किल है "| हमारी आर्थिक परिस्थिती की बदौलत मेरा मुंबई जाकर कोशीश करना असंभव था तो मैंने सोलापुर मे रह्कर अपनी शिक्षा पूरी करनेका और अभिनय तथा नृत्य मे अनुभव लेनेका निर्णय लिया |
वाणिज्य शाखा की पढ़ाई चल रही थी | वह जमाना डिस्को और ब्रेक डांस का था | अभिनय और इन डांस शैलियोंको सीखने के लिएँ मैं एक डांस ग्रुप तथा नाट्य मंडली मे शामिल हुआ | इसके लिए मेरे मित्र राहुल कोठाडिया और उनकी रिश्तेदार डॉ. हर्षदा शहा ने बहोत मदद की थी | तो मेरा दिनक्रम बहोत व्यस्त था , सुबह कॉलेज , दोपहर अकौंटन्सी क्लास और शामको या तो डांस क्लास या नाट्य मंडली मे जाकर नाटक की प्रॅक्टीस | मेरे बाकी मित्र शाम मे घूमने निकली सुन्दर युवतियोंको देखने बाहर निकलते थे और मैं बड़े मुश्किलसे अपने आप को मेरे सपने को साकार करने के लक्ष्य की ओर खींच चल पडता था | यूँही साल गुजर गएँ , मैंने वाणिज्य शाखा की पदवी तथा M.B.A. की शिक्षा पूरी की और साथ-साथ श्री .मनोज शहा और श्री. अन्वर जी से डिस्को तथा ब्रेक डांस सिखा , कुछ स्टेज शो भी किये | उसी दरमियान अलग-अलग नाट्य मंडलियों मे अभिनय का अनुभव लेता रहा | मेरी अभिनय क्षमता को विकसित करनेमें श्री. बंडेश पांढरे ,श्री. अजय दासरी, श्री. अरुण मेहता , श्री. कांबले सर , श्री. अतुल कुलकर्णी , डॉ . वामन देगांवकर , श्री. शिरीष देखणे ,श्री. जगदीश हिरेमठ और मेरे परम मित्र श्री. सुनिल गुरव इन महान दिग्दर्शकोंका बड़ा हाथ रहा है |
अब मुझे लग रहा था की मैं मुंबई जाकर फिल्मो मे अभिनय करने की कोशिश कर सकता हूँ तभी ...................... मेरे पिताजी की दिल का दौरा पडने से मृत्यू हो गई ....... | मेरे लिए यह झटका बहोत ... बहोत बड़ा था | सारी जिम्मेदारी मेरी माँ पर आ पड़ी थी | उसके साथ हाथ बटाने के लिए मैंने नोकरी करनेका निर्णय ले लिया | मेरा सपना मुझसे दूर -दूर हो रहा था | फिर भी मैंने हिम्मत जुटाके नाटकों मे स्टेज पर या उसके पीछे काम करना जारी रखा था |
माँ १९९६ मे अपनी शिक्षिका के नोकरी से निवृत्त होने के बाद हम दोनों भाग्यनगर हैदराबाद आ गएँ | सिकंदराबाद मे हमारे नानाजी की भेंट दी हुई जमीन पर माँ ने एक घर बनाया ,उसीमें रहने लगे थे | मैंने मेरे रिश्तेदारोंको बताया की अब मै अभिनय क्षेत्र मे काम करना चाहता हूँ | बड़े विचार-विमर्श के बाद मेरे मामाजी डॉ .बी. रामाराव , मौसेरे भाई श्री . अनिल देशपांडे और श्री . नंदू गामजी चाचा जी के मदद से मै श्री. कृष्णा भारद्वाज जी से मिला | वह उन दिनों एक टी.व्ही. धारावाहिक के लिए कास्टिंग इंचार्ज थे और उसीमे अभिनय भी कर रहे थे | उन्होने मुझे टी.व्ही . कॅमेरा के सामने धारावाहिक मे काम करनेका पहला मौका दिया | उसके बाद कई हिंदी और मराठी टी .व्ही . धारावाहिकोंमे अभिनय करनेका सिलसिला चलता रहा |
एक दिन खबर आई की प्रसिद्ध दिग्दर्शक श्री. नागेश कुकुनूरजी , जाने-माने शो- मन श्री. सुभाष घई जी के मुक्ता आर्ट्स के लिए ' इकबाल ' फिल्म बना रहें है और उस के लिए ऑडीशन ( पात्र -निर्धारण ) हो रहा है | मेरे स्नेही श्री.भास्कर और डॉ.श्रीकांत के मदद से मैंने ऑडीशन दिया और क्रिकेट सिलेक्शन कमिटी चेयरमन सुनिल मित्रा के पात्र के लिएँ चुन भी लिया गया | फिल्म शूटिंग के दिन सुबह चार बजे उठकर चले गया और मुझे पता चला के मेरे तीन सीन विश्वप्रसिद्ध महान अभिनेता , जिनका मैं कई सालोंसे फॅन हूँ , श्री . नसीरुद्दीन शाह जी के साथ है | मुझे पसीने छूट गए | जैसे-तैसे हिम्मत जुटाकर मैंने शूटिंग पूरी की | श्री. नागेश कुकुनूर जी को धन्यवाद देकर मैं घर वापिस आ गया | मैं खुशी के मारे मानो आसमान मे उड़ रहा था |
प्रसाद आई-मॅक्स सिनेमाघर मे फिल्म लगी थी | मैं ,मेरी माँ,पत्नी , मेरी दो बेटियाँ, मामाजी और ममेरा भाई श्रीनिवास हम सब मिलके फिल्म देखने गएँ | मेरे ४५ वर्ष के आयु मे बहोत खुशी के क्षण चंद ही है , यह क्षण उसमेसे एक है ...... मेरे अभिनीत सीन आएँ...... मेरी आखोँ मे खुशी के आँसू थे , क्यों की ..........
लगभग बीस साल के प्रदीर्घ प्रतीक्षा , मेहनत और लगन के बाद मेरा और मेरे पिताजी का --- बड़े पर्दे का सपना पूरा हो रहा था |
वाणिज्य शाखा की पढ़ाई चल रही थी | वह जमाना डिस्को और ब्रेक डांस का था | अभिनय और इन डांस शैलियोंको सीखने के लिएँ मैं एक डांस ग्रुप तथा नाट्य मंडली मे शामिल हुआ | इसके लिए मेरे मित्र राहुल कोठाडिया और उनकी रिश्तेदार डॉ. हर्षदा शहा ने बहोत मदद की थी | तो मेरा दिनक्रम बहोत व्यस्त था , सुबह कॉलेज , दोपहर अकौंटन्सी क्लास और शामको या तो डांस क्लास या नाट्य मंडली मे जाकर नाटक की प्रॅक्टीस | मेरे बाकी मित्र शाम मे घूमने निकली सुन्दर युवतियोंको देखने बाहर निकलते थे और मैं बड़े मुश्किलसे अपने आप को मेरे सपने को साकार करने के लक्ष्य की ओर खींच चल पडता था | यूँही साल गुजर गएँ , मैंने वाणिज्य शाखा की पदवी तथा M.B.A. की शिक्षा पूरी की और साथ-साथ श्री .मनोज शहा और श्री. अन्वर जी से डिस्को तथा ब्रेक डांस सिखा , कुछ स्टेज शो भी किये | उसी दरमियान अलग-अलग नाट्य मंडलियों मे अभिनय का अनुभव लेता रहा | मेरी अभिनय क्षमता को विकसित करनेमें श्री. बंडेश पांढरे ,श्री. अजय दासरी, श्री. अरुण मेहता , श्री. कांबले सर , श्री. अतुल कुलकर्णी , डॉ . वामन देगांवकर , श्री. शिरीष देखणे ,श्री. जगदीश हिरेमठ और मेरे परम मित्र श्री. सुनिल गुरव इन महान दिग्दर्शकोंका बड़ा हाथ रहा है |
अब मुझे लग रहा था की मैं मुंबई जाकर फिल्मो मे अभिनय करने की कोशिश कर सकता हूँ तभी ...................... मेरे पिताजी की दिल का दौरा पडने से मृत्यू हो गई ....... | मेरे लिए यह झटका बहोत ... बहोत बड़ा था | सारी जिम्मेदारी मेरी माँ पर आ पड़ी थी | उसके साथ हाथ बटाने के लिए मैंने नोकरी करनेका निर्णय ले लिया | मेरा सपना मुझसे दूर -दूर हो रहा था | फिर भी मैंने हिम्मत जुटाके नाटकों मे स्टेज पर या उसके पीछे काम करना जारी रखा था |
माँ १९९६ मे अपनी शिक्षिका के नोकरी से निवृत्त होने के बाद हम दोनों भाग्यनगर हैदराबाद आ गएँ | सिकंदराबाद मे हमारे नानाजी की भेंट दी हुई जमीन पर माँ ने एक घर बनाया ,उसीमें रहने लगे थे | मैंने मेरे रिश्तेदारोंको बताया की अब मै अभिनय क्षेत्र मे काम करना चाहता हूँ | बड़े विचार-विमर्श के बाद मेरे मामाजी डॉ .बी. रामाराव , मौसेरे भाई श्री . अनिल देशपांडे और श्री . नंदू गामजी चाचा जी के मदद से मै श्री. कृष्णा भारद्वाज जी से मिला | वह उन दिनों एक टी.व्ही. धारावाहिक के लिए कास्टिंग इंचार्ज थे और उसीमे अभिनय भी कर रहे थे | उन्होने मुझे टी.व्ही . कॅमेरा के सामने धारावाहिक मे काम करनेका पहला मौका दिया | उसके बाद कई हिंदी और मराठी टी .व्ही . धारावाहिकोंमे अभिनय करनेका सिलसिला चलता रहा |
एक दिन खबर आई की प्रसिद्ध दिग्दर्शक श्री. नागेश कुकुनूरजी , जाने-माने शो- मन श्री. सुभाष घई जी के मुक्ता आर्ट्स के लिए ' इकबाल ' फिल्म बना रहें है और उस के लिए ऑडीशन ( पात्र -निर्धारण ) हो रहा है | मेरे स्नेही श्री.भास्कर और डॉ.श्रीकांत के मदद से मैंने ऑडीशन दिया और क्रिकेट सिलेक्शन कमिटी चेयरमन सुनिल मित्रा के पात्र के लिएँ चुन भी लिया गया | फिल्म शूटिंग के दिन सुबह चार बजे उठकर चले गया और मुझे पता चला के मेरे तीन सीन विश्वप्रसिद्ध महान अभिनेता , जिनका मैं कई सालोंसे फॅन हूँ , श्री . नसीरुद्दीन शाह जी के साथ है | मुझे पसीने छूट गए | जैसे-तैसे हिम्मत जुटाकर मैंने शूटिंग पूरी की | श्री. नागेश कुकुनूर जी को धन्यवाद देकर मैं घर वापिस आ गया | मैं खुशी के मारे मानो आसमान मे उड़ रहा था |
प्रसाद आई-मॅक्स सिनेमाघर मे फिल्म लगी थी | मैं ,मेरी माँ,पत्नी , मेरी दो बेटियाँ, मामाजी और ममेरा भाई श्रीनिवास हम सब मिलके फिल्म देखने गएँ | मेरे ४५ वर्ष के आयु मे बहोत खुशी के क्षण चंद ही है , यह क्षण उसमेसे एक है ...... मेरे अभिनीत सीन आएँ...... मेरी आखोँ मे खुशी के आँसू थे , क्यों की ..........
लगभग बीस साल के प्रदीर्घ प्रतीक्षा , मेहनत और लगन के बाद मेरा और मेरे पिताजी का --- बड़े पर्दे का सपना पूरा हो रहा था |